बहादुर अहमदशाह को गद्दी से निस्काषित करने के बाद आलमगीर द्धितीय मुगल सिंहासन की राजगद्दी पर बैठा था। यह एक कमजोर प्रशासक था, जिसे सत्ता चलाने का कोई खासा अनुभव नहीं था।
आलमगीर द्धितीय अपने वजीर गाजीउद्दीन इमादुलमुल्क के इशारों पर काम करता था, हालांकि 1759में उसकी वजीर गाजीउद्दीन ने ही उसकी हत्या करवा दी थी।
आलमगीर द्धितीय के शासनकाल में ही 1756 में अहमदशाह अब्दाली ने चौथीबार भारत में आक्रमण किया था और दिल्ली में काफी लूटपाट की थी, सिंध पर कब्जा कर लिया था। इसके साथ ही साल 1758 ईसवी में मराठों ने दिल्ली पर चढ़ाई की वहीं आलमगीर द्धितीय इन सभी घटनाओं को मूकदर्शक बनकर देखता रहा। इससे पहले 1757 में हुए प्लासी के युद्द में ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत के बाद से भारत में अंग्रेजों की स्थिति मजबूत होती चली गई और मुगल पतन के मुहाने पर पहुंच गए।